गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धासुमन: स्वर्गीय गुरु जी जनार्दन पांडे जी को नमन
बलिया
गुरु न केवल एक शिक्षक होते हैं, बल्कि एक दीपक भी होते हैं जो अंधकार से प्रकाश की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे जीवन के ऐसे मूर्धन्य स्तम्भ होते हैं, जिनके सान्निध्य मात्र से ज्ञान, संस्कार और आत्मबोध प्राप्त होता है। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व के धनी थे हमारे पूज्य गुरुजी स्वर्गीय जनार्दन पांडे जी, जिनकी स्मृति आज भी हमारे अंतर्मन को आलोकित करती है।
गुरु पूर्णिमा का महात्म्य
गुरु पूर्णिमा का पर्व केवल एक परंपरा नहीं, यह उस ऋण को स्मरण करने का दिन है जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है। यह पर्व महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने चारों वेदों का संपादन कर मानवता को ज्ञान का अक्षय भंडार दिया। उसी परंपरा के वाहक हमारे गुरु जी जनार्दन पांडे जी भी थे, जिन्होंने न केवल शिक्षा दी, बल्कि जीवन को सही दिशा देने का कार्य किया।
गुरु जी जनार्दन पांडे जी: एक संपूर्ण गुरु की छवि
गुरु जी जनार्दन पांडे जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे शिक्षक थे, मार्गदर्शक थे, और एक दार्शनिक दृष्टि के धनी थे। उनका बोलना सरल होता, पर उसका प्रभाव गहरा। उन्होंने अपने विद्यार्थियों में केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं बाँटा, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, नैतिकता और सामाजिक दायित्व की शिक्षा दी।
उनकी ज्ञान का मंदिर होती, जहाँ अनुशासन की दीपशिखा में जिज्ञासा की लौ जलती थी। वे प्रत्येक शिष्य की क्षमता को पहचानते थे और उसे निखारने में कभी थकते नहीं थे। उनके लिए शिक्षण कार्य कोई नौकरी नहीं, एक तपस्या थी – और उनके लिए विद्यार्थी कोई संख्या नहीं, आत्मिक उत्तराधिकारी होते थे।
सादगी में समृद्धि, मौन में संदेश
गुरुजी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी सादगी। वे दिखावे से कोसों दूर थे, पर उनके भीतर ज्ञान और अनुभव का समंदर लहराता था। जब वे बोलते थे, तो शब्द कम होते थे पर अर्थ विशाल होता। वे किसी के जीवन में परिवर्तन ला देने की शक्ति रखते थे – बिना शोर किए।
जीवन से मृत्यु तक प्रेरणा
आज भले ही गुरु जी जनार्दन पांडे जी हमारे बीच भौतिक रूप में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनके संस्कार और उनका समर्पण आज भी हमारे साथ है। उन्होंने जो ज्ञान-दीप जलाया, वह आज भी हमारे पथ को प्रकाशित कर रहा है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि एक शिक्षक की भूमिका केवल कक्षा तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह जीवनदायिनी होती है।
गुरु दक्षिणा की नई परिभाषा
आज जब हम गुरु पूर्णिमा पर उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं, तो यह केवल औपचारिकता नहीं, यह आत्मा से निकला आभार है। उनके लिए सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा यह होगी कि हम उनके दिखाए गए मार्ग पर चलें, उनके मूल्यों को अपनाएं और समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनें – ठीक उसी तरह जैसे वे हमारे लिए थे।
समापन वंदना:
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।"
हे पूज्य गुरुजन! आपके चरणों में कोटि-कोटि नमन।
आपका आशीष सदैव हमारे जीवन की दिशा और दशा तय करता रहे।
0 Comments