सवालों के घेरे में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग



 

सवालों के घेरे में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग

माधुरी की मौत या सिस्टम की नाकामी? लापरवाह अस्पताल सील, पर संचालक पर मुकदमा क्यों नहीं?


सवालों के घेरे में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग, 35 अवैध अस्पतालों की जानकारी के बावजूद चुप्पी क्यों?


सिकंदरपुर /बलिया आजमगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश


सिकंदरपुर में एक निजी अस्पताल की लापरवाही से हुई 26 वर्षीय माधुरी की दर्दनाक मौत अब केवल एक चिकित्सा गलती नहीं रह गई, बल्कि यह प्रशासनिक और कानूनी तंत्र की निष्क्रियता का प्रतीक बन गई है। परिजन जहां दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और मुआवजे की मांग को लेकर सड़कों पर हैं, वहीं चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक अस्पताल संचालक और लापरवाह डॉक्टरों के खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है।


कौन है जिम्मेदार? पुलिस पर सवाल, स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी


माधुरी के परिजन लगातार पुलिस से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन सिकंदरपुर थाना अभी तक केवल "जांच चल रही है" कहकर मामले को टाल रहा है। सवाल यह उठता है कि जब अस्पताल सील हो चुका है, जब सीएमओ के निर्देश पर जांच टीम मौके पर पहुंच चुकी है, जब मऊ के डॉक्टरों ने ऑपरेशन को गलत ठहराया है — तो आखिर मुकदमा दर्ज करने में देरी क्यों?


क्या पुलिस किसी "संकेत" का इंतजार कर रही है? या फिर अस्पताल संचालक को बचाने की कोई अंदरूनी कवायद चल रही है?


स्वास्थ्य विभाग भी कठघरे में: अवैध अस्पतालों की फेहरिस्त कब खुलेगी?


सिर्फ यह एक अस्पताल ही नहीं, बल्कि पूरे सिकंदरपुर नगर पंचायत क्षेत्र में करीब 35 अवैध जच्चा-बच्चा केंद्र खुलेआम चल रहे हैं — न रजिस्ट्रेशन, न लाइसेंस, न निगरानी।

अगर यह अस्पताल वर्षों से बिना सही कागजात के चल रहा था, तो क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सीएचसी अधीक्षक और सीएमओ कार्यालय इस हकीकत से अंजान थे?

या फिर यह सब उनकी जानकारी में ही हो रहा था और "नजराना" व्यवस्था को आँखें मूँदने पर मजबूर कर देता है?


घटना के दिन से लापता अस्पताल संचालक, फिर भी कार्रवाई नहीं!


1 जुलाई की रात माधुरी की मौत के बाद से ही अस्पताल में ताला लटक रहा है। पूरा स्टाफ फरार है और संचालक गायब। बावजूद इसके, पुलिस अब तक उसे तलाशने में नाकाम रही है।

यह न केवल प्रशासन की कमजोरी, बल्कि न्याय प्रणाली की धीमी गति पर भी सवाल खड़े करता है।


पीड़ित परिवार की गुहार: मुकदमा दर्ज हो, गिरफ्तारी हो


माधुरी के पिता रामाशीष कनौजिया और परिवार के अन्य सदस्य प्रशासन से केवल एक सवाल पूछ रहे हैं:


> "हमारी बेटी की मौत का जिम्मेदार कौन? अगर डॉक्टर दोषी हैं, तो अब तक मुकदमा क्यों नहीं हुआ? और अगर वे दोषी नहीं, तो अस्पताल सील क्यों हुआ?"

परिजन दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी, मुकदमा दर्ज करने और  उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं।


निष्कर्ष: क्या यह बेटी की मौत भी ‘फाइलों’ में दफ्न हो जाएगी?


यह मामला अब केवल एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सच्चाई को उजागर कर रहा है — जहां मौत के बाद भी इंसाफ की प्रक्रिया शुरू नहीं होती।

प्रशासन अगर अब भी नहीं जागा, तो यह चुप्पी सिर्फ एक बेटी की मौत नहीं, बल्कि इंसाफ की भी हत्या कहलाएगी।

यह प्रकरण महिला आयोग के पास प्रेषित किया गया है महिला आयोग के द्वारा एक हफ्ते के अंदर मुख्य चिकित्सा अधिकारी बलिया से जवाब तलब किया गया है देखिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी क्या करते हैं नहीं तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महिला नेता रेखा पासवान ने जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को एक पत्र प्रेषित कर धरना प्रदर्शन की कार्रवाई की जाएगी


रिपोर्ट: घनश्याम तिवारी

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