विद्यालय को बचाने की जंग तेज
विद्यालय विलय के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे शिक्षक, अपने विद्यालय को बचाने की जंग तेज
संवाददाता विशेष | शिक्षा संवाद |
लखनऊ/बलिया:
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कम नामांकन वाले प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विलय की नीति के खिलाफ अब शिक्षकों का सब्र टूट चुका है। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक संगठनों ने इस नीति को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट की शरण ली है।
शिक्षकों की मांग है कि जिस विद्यालय में वे वर्षों से सेवा दे रहे हैं, उसे बंद न किया जाए और उन्हें जबरन अन्य विद्यालय में स्थानांतरित न किया जाए। उनका कहना है कि यह न सिर्फ शिक्षकों के हितों के खिलाफ है, बल्कि इससे स्थानीय बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर भी विपरीत असर पड़ेगा।
याचिका में मुख्य तर्क:
अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट में दलील दी कि –
> “विद्यालयों का इस तरह से जबरन विलय संविधान के अनुच्छेद 21-A (मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) के खिलाफ है। यह नीति ग्रामीण शिक्षा की रीढ़ को कमजोर कर देगी।”
हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सरकार से जवाब तलब किया है। अगली सुनवाई की तारीख शीघ्र तय होगी।
शिक्षक बोले: "न्याय की उम्मीद जिंदा है"
एक शिक्षक प्रतिनिधि ने कहा –
> “हमें न्यायपालिका पर विश्वास है। हम केवल अपने रोजगार के लिए नहीं लड़ रहे, बल्कि उन ग्रामीण बच्चों के भविष्य के लिए आवाज उठा रहे हैं जिनका एकमात्र सहारा यही छोटे विद्यालय हैं।”
सरकार का कहना है कि विद्यालयों के विलय से संसाधनों का बेहतर उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। परंतु, ग्रामीण क्षेत्र में इसका जोरदार विरोध देखने को मिल रहा है। कई जगह अभिभावक, ग्राम प्रधान और जनप्रतिनिधि भी इस निर्णय के खिलाफ सड़क पर उतर चुके हैं।
निष्कर्ष:
अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। यह फैसला यह तय करेगा कि छोटे-छोटे गांवों के नन्हें विद्यालय, जो अब तक शिक्षा का आधार बने हुए थे, क्या वाकई जारी रहेंगे या किसी नीति की भेंट चढ़ जाएंगे।
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