मजबूर बाप रोया,
पगड़ी उछल रही थी,
दहेज और गरीबी
प्रतापगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
डोली थी उठने वाली।
बेटी सिसक रही थी।।
मजबूर बाप रोया,
पगड़ी उछल रही थी,
डोली थी उठने वाली।
तिनका तिनका जोड़ा,
पाई पाई संजोया,
अपने से ऊंचे घर में,
बेटी को अपने ब्याहा ,
डोली थी उठने वाली।
औकात से भी ज्यादा,
बेटी को अपने साजा,
नाखुश चले गए थे ,
ताना सुना रहे थे,
डोली थी उठने वाली।
घुट घुट के जी रही थी,
चुपचाप सह रही थी,
जुल्मों सितम की आंधी ,
बढ़ती ही जा रही थी,
डोली थी उठने वाली
बेटी से सिसक रही थी।।
सीमा त्रिपाठी
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका
लालगंज प्रतापगढ़
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