अनावश्यक मोह पतन का कारण
सिकन्दरपुर हिंदुस्तान संवाद
तहसील क्षेत्र सिकन्दरपुर में डूहाँ बिहरा (इहाँ) स्थित श्रीवनखण्डी नाथ (श्री नागेश्वर नाथ महादेव) मठ के पावन परिसर में उक्त मठ के यशस्वी संस्थाध्यक्ष स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज की विशेष कृया से आयोजित १०८ कुण्डीय कोटि होमात्मक राजसूय महायज्ञ जारी है। यज्ञाचार्य पण्डित रेवती रमण तिवारी तिवारी के आचार्यत्व में वैदिक। वैदिक विधि-विधान से पूजन
मदिवसचेन-वन्दन हवन आरती आदि निरन्तर किया जा रहा है। पाँच मञ्जिला सुविशाल यज्ञमण्डप लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। उधर ज्ञानयज्ञ-मण्डप श्रद्धालुओं से उसावस भरा रहता है।
अयोध्या धाम से पधारों गौरांगी गौरी को सुनने सुधी श्रोताओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। मानस-मर्मज्ञा गौरांगी गौरीजी ने शनिवार को सान्ध्य सत्र में सती- मोह पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनावश्यक मोह सर्वनाश का कारण है। वे व्यासपीठ से श्रोताओं को सम्बोधित कर रही थीं। विमोहित सती ने शंकर जी से कहा कि यदि ये भगवान होते तो इनकी पत्नी चोरी नहीं जाती और न ये पटली को ढूँढुते वन-वन भटकते ही। जब ये सीता को ढूँढ़ रहे हैं तो क्यों न मैं- सीता ही बन जाऊँ और वे सीता का रूप, बना ली। वस्तुतः किसी का रूप बना लेने से स्वभाव नहीं आता। लक्ष्मण जी चकित थे कि इन्होंने माता जानकी का रूप क्यों बनाया?। किन्तु वे मौन नही है रहे क्योंकि बड़ों के झगड़े में मौन ही रहा जाता है। कोई पति अपनी पत्नी को प्रणाम नहीं करता, अतः राम बोले- सीता का पति आपके चरणों में प्रणाम करता है।" सती लज्जित हो गयी। उसे अपने दुष्कृत्य पर पश्चात्ताप होने लगा। दूध में मिला पानी भी दूध के भाव बिकता है। आग पर रखा पानी वाष्पित हो जाता है तो मित्र पानी के प्रेम में दूध उफन कर अग्नि को ही बुझा देता है। मित्रता ऐसी हो।
सती की परीक्षा प्रणाली से क्षुब्ध शंकर समाधिस्थ हो गया। समाधि खुली तो बह्मा द्वारा अधिकार प्राप्त दक्ष ने भारी यज्ञठाना किन्तु शंकर को न्यौता नहीं दिया। अनाहूत या सती दक्ष गृहू जाकर असह्य अपमान होने पर योगाग्नि में जल मरी। यज्ञ विध्वंस हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमाचल-गृहजन्म लिया नारदीय प्रेरणा से हिमाचल की पुत्री पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने की तपस्या पूरी की और शंकर पार्वती का विवाह सोल्लास सम्पन्न हुआ। एक गौरैया पक्षी का दृष्टान्त देते हुए गौरांगी ने कहा कि कभी किसी को छोटा मत समझना, बात का होना ही नहीं चाहिए। अहंकार हो पतन का कारण है जैसा कि अपार समुद्र को तुच्छ पक्षी गौरैया के समक्ष झुककर क्षमा माँगना पड़ा। (राजेन्द्र
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