हाथों को उठा कर के,किस तरह दुआं माॅंगे
मेरी ✒️ से.....
चन्दननगर, हुगली ,पश्चिम बंगाल
हाथों को उठा कर के,किस तरह दुआं माॅंगे
वो जोड़ के हाथों को माॅंगे भी तो क्या माॅंगे
यह कैसे बहे होंगे आँखों से तिरे आंसू
इस कृत्य के बदले में क़ातिल ही कज़ा माॅंगे
टूटे हुए वो तारे ख़ुद टूट चुकें हैं तो
क्या देंगे किसी को वो क्या उनसे भला माॅंगे
प्यासा न रहा जाए मयखाने में आकर के
इक जाम उसे देदो क्या इसके सिवा माँगे
सच बोलूं तो इस ख़ूँ का बदला नही है फांसी
फांसी से बढ़ी हो जो हम वोही सज़ा मांगे
जब खौफ के साये में बच्चों को पड़ें जीना
कानून न हो बाकी दिल किससे वफ़ा मांगे
ऐ देब लहू से अब तारीख लिखी जाए
ज़ालिम न करे हिम्मत इस जुर्म की, क्या माॅंगे?
कज़ा -मौत
राखी देब 'इरा'
चन्दननगर, हुगली ,पश्चिम बंगाल
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