गोवंश तस्करी पर प्रश्नचिह्न: प्रशासनिक मिलीभगत से जारी अवैध धंधा

गोवंश तस्करी पर प्रश्नचिह्न: प्रशासनिक मिलीभगत से जारी अवैध धंधा

बलिया। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण अधिनियम, 1955 (संशोधित 2020) के तहत जिले के प्रत्येक थाने को सख्त निर्देश जारी किए गए हैं कि गोवंश के वध, तस्करी अथवा परिवहन पर पूर्ण प्रतिबंध रहे। पुलिस अधीक्षक बलिया ने स्पष्ट आदेश दिया है कि इस अधिनियम का कड़ाई से पालन कराया जाए।

इसके बावजूद थाना सिकंदरपुर क्षेत्र के खरीद–दरौली घाट पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में स्टीमर पर गाय व बछड़ों की आवाजाही जारी है। स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि यह अवैध कार्यवाही हल्का सिपाही, उप निरीक्षक (एसआई) एवं स्थानीय चौकीदारों की मिलीभगत से हो रही है। बताया जा रहा है कि गोवंश को दरौली घाट से नदी पार कर बिहार की ओर ले जाया जाता है।

ग्रामीणों द्वारा कई बार पुलिस को इसकी शिकायत की गई, यहाँ तक कि वीडियो एवं फोटो साक्ष्य भी उपलब्ध कराए गए हैं, जिनमें दर्जनों की संख्या में गोवंश स्टीमर पर ले जाए जाते स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। बावजूद इसके, थाना पुलिस द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। सूत्रों के अनुसार पुलिस महज औपचारिकता निभाते हुए यह दावा करती है कि “मामले की जांच की जा रही है” या “धंधा बंद करा दिया गया है”, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस गोवंश परिवहन में कुछ दलाल सक्रिय हैं जो पुलिस व प्रशासनिक संरक्षण में प्रतिदिन लाखों का धंधा कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल शासन के निर्देशों की अवहेलना है बल्कि गो-वध निवारण अधिनियम की धारा 3, 5, 8 एवं 9 के अंतर्गत दंडनीय अपराध भी है।


👉 धारा 3 के अनुसार किसी भी व्यक्ति द्वारा गाय, बछड़ा या सांड का वध पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।
👉 धारा 5 में गोवंश के अवैध परिवहन या बिक्री पर रोक लगाई गई है।
👉 धारा 8 में ऐसे अपराधों के लिए सात वर्ष तक की सजा व 3 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
👉 धारा 9 के अंतर्गत अपराधी की संपत्ति को जब्त करने का भी अधिकार पुलिस को प्राप्त है।

पुलिस अधीक्षक बलिया से अपेक्षा की जा रही है कि वह इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराएँ, ताकि गोवंश तस्करी में लिप्त पुलिसकर्मियों और स्थानीय दलालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सके। प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता न केवल कानून के शासन पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि शासन की मंशा को भी कमजोर करती है।




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