समय बीतता गया पापा जी भी बूढ़े हो गए

समय बीतता गया पापा जी भी बूढ़े हो गए 

 जो चले गए इस दुनिया से (कहानी)

प्रतापगढ़

मेरी दादी काफी बूढी हो चुकी थी। उनको उठने बैठने में काफी दिक्कत होने लगी थी। परंतु मेरे पापा अपनी व्यस्तता के कारण कभी दादी के पास बैठते ही नहीं थे।उन्हें दादी का सुख-दुख पूछने का भी टाइम ही नहीं था। मेरी दादी की आंखें मेरे पापा को ही बस निहारती रहती थी। और दादी सोचती थी कि मेरे लिए इसके पास टाइम ही कहां है? दादी के पैरों में दिक्कत थी वह जब खड़ी होती थी तो दीवार का सहारा लेकर खड़ी हो पाती थी। एक दिन पापा देख रहे थे कि दादी कैसे दीवार का सहारा लेकर खड़ी हो रही है। और उनके हाथों के निशान दीवारों पर बनते जा रहे हैं और दीवारें गंदी हो रही है। पापा से रहा नहीं गया और उन्होंने दादी की मदद करने के बजाय दादी से कहा आपके हाथों की निशान के कारण दीवार कितनी गंदी दिखाई दे रही है। एक दिन तो पापा ने  दादी को बड़े सख्ती से मना कर दिया कि आज के बाद आप दीवारों का सहारा नहीं लेंगी।दूसरे दिन दादी ने सोचा कि आज वह दीवारों का सहारा नहीं लेंगी और खुद के सहारे से खड़ी होंगी।तभी दादी के पैर का संतुलन बिगड़ गया और दादी गिर पड़ी। गिरने के कारण उनकी कमर की हड्डी टूट गई और इलाज के दौरान ही दादी संसार को छोड़कर चली गई। दादी की मृत्यु के बाद पापा घर की दीवारों को पुताई कराना चाहते थे परंतु मैंने पापा से कहा कि मैं दादी के हाथों के निशान को मिटाना नहीं चाहता तभी पेंटर मेरी और पापा की बात सुन रहा था तब उसने कहा इस जगह में सुंदर डिजाइन बना देता हूं। जिस पर पापा राजी हो गए और पेंटिंग के बाद वह जगह घर की सबसे खूबसूरत जगह दिखने लगी। जो देखता वही तारीफ करता। समय बीतता गया पापा जी भी बूढ़े हो गए थे और उन्हें भी दादी की तरह उठने बैठने में दिक्कत होने लगी थी। मैं पापा जी को बड़े प्यार से सहारा देकर उठाता और उनके पास बैठकर उनसे बातें भी करता एक दिन पापा जी उठ रहे थे कि अचानक उनका संतुलन बिगड़ते देख  मैं तुरंत उनके पास गया और कहा पापा जी आप दीवार का सहारा लेकर खड़े होने की कोशिश किया करिए और इतने में मेरे बच्चे भी दौड़ कर आ गए और बोले दादाजी आपसे बढ़कर यह दीवार नहीं है। आप सलामत रहे दीवार गंदी होने दीजिए। उस दिन मेरे पापा जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वह अचानक जोर-जोर से रोने लगे और कहने लगे काश मैं भी ऐसा व्यवहार अपनी मां के साथ किया होता तो आज हमारी मां इतनी जल्दी दुनिया छोड़कर नहीं जाती और उन्होंने दादी की तस्वीर के आगे खड़े होकर अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी। हमें अपने बुजुर्गों का आदर व सम्मान करना चाहिए। और उनके पास बैठकर उनका दुख सुख जानने की कोशिश करनी चाहिए। उनके द्वारा दी गई सीख हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह कटु सत्य है कि जो इस दुनिया से चले जाते हैं वह लौटकर कभी नहीं आते हैं। इसलिए उनकी सेवा, आदर और सम्मान सच्चे मन से करना चाहिए।

सीमा त्रिपाठी 

शिक्षिका साहित्यकार लेखिका

अध्यक्ष महिला शिक्षक संघ 

लालगंज प्रतापगढ़

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