बरसात की कमी और बाढ़ की विभीषिका के बीच दोहरी मार झेल रहे किसान
बलिया ( राष्ट्र की संपत्ति)
इस वर्ष मौसम की मार ने किसानों को दोहरी संकट की स्थिति में ला खड़ा किया है। एक ओर जिले में समय पर और पर्याप्त बारिश न होने से किसान खरीफ फसलों की बुआई नहीं कर पाए, तो दूसरी ओर गंगा, घाघरा और सरयू जैसी नदियों में जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। किसान मौसम की इस विपरीत परिस्थिति में खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ का संकट
जिले के पूरब औऱ दक्षिणी उत्तर,पश्चिम क्षेत्रों में अब तक औसत से कम बारिश हुई है। धान की रोपाई के लिए खेत सूखे पड़े हैं, जिससे किसान सिंचाई के लिए ट्यूबवेल और डीजल पंप का सहारा ले रहे हैं। दूसरी ओर, उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में गंगा और घाघरा नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भरने लगा है, जिससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचने की आशंका है।
किसानों की चिंता बढ़ी
किसानों का कहना है कि एक ओर बारिश नहीं होने से धान, मक्का और दलहनों की बुआई में देरी हो रही है, दूसरी ओर बाढ़ का खतरा मंडराने से पहले से बोई गई फसलें नष्ट होने का डर सता रहा है। कुछ इलाकों में सब्जियों और दलहनों की फसल पहले ही खराब हो चुकी है। इससे किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।
सरकारी मदद की आस
किसान सरकार से तुरंत राहत और मुआवजे की मांग कर रहे हैं। हालांकि जिला प्रशासन ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ चौकियां स्थापित कर सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। कृषि विभाग द्वारा किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे वैकल्पिक फसलों पर विचार करें और सिंचाई के लिए सामूहिक व्यवस्था करें।
किसानों का कहना
सिकन्दरपुर क्षेत्र के किसान राम प्रवेश राय ,भोला राय ने बताया, “पिछले साल समय पर बारिश हुई थी, जिससे धान की खेती में लाभ हुआ। इस बार खेतों में दरारें पड़ गई हैं। अब अगर बाढ़ आ गई तो जो थोड़ा बहुत बोया है, वह भी बर्बाद हो जाएगा।” इसी तरह बांसडीह क्षेत्र के किसान रामेश्वर ने कहा, “हम किसान मौसम की मार झेलने को मजबूर हैं। न तो पर्याप्त बारिश हो रही है, न ही बाढ़ की रोकथाम की व्यवस्था।”
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