गुरुवाणी ही दिग्दर्शक: गुरु पूजनोत्सव में अतुल कृष्णभामिनीशरण का उद्बोधन
परमधामपीठ अद्वैत शिवशक्ति दुहा विहरा से जुड़े पूज्य गुरुवर श्री मौनी जी महाराज के विगत माह हुए देहावसान के बीच श्रद्धा, भक्ति और ज्ञान से ओतप्रोत गुरु पूजनोत्सव का आयोजन अत्यंत श्रद्धाभाव से सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत जलकलश यात्रा से हुई, जिसमें सैकड़ों माताएं-बहनें, श्रद्धालु, हाथी-घोड़े और गाजे-बाजे के साथ भव्य शोभायात्रा में सम्मिलित हुए। यात्रा अद्वैत शिवशक्ति परमधामपीठ से निकलकर श्री नागेश्वरनाथ महादेव मठ, बिहरा तक पहुँची।
मठ परिसर में यज्ञाचार्य पं० रेवती रमण तिवारी के नेतृत्व में यज्ञ सम्पन्न हुआ। प्रधान यजमान करुणानिधान भारती और राम कृपाल चौरसिया सपत्नीक उपस्थित रहे। यज्ञ में जलदेवता वरुण का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन हुआ। इसके बाद शोभायात्रा पुनः परमधामपीठ लौटी, जहाँ मण्डप-प्रवेश, पूजन तथा प्रसाद वितरण सहित विविध धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए।
गुरुतत्त्व पर मार्मिक प्रवचन
कार्यक्रम के सान्ध्य सत्र में भक्तिभूमि वृन्दावन धाम से पधारे श्री अतुल कृष्णभामिनीशरण महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को गुरुतत्त्व की महिमा से अवगत कराया। उन्होंने कहा, "गुरु का शरीर नश्वर हो सकता है, परंतु गुरुतत्त्व शाश्वत, अक्षुण्ण और कालजयी है।" उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि जैसे बिल्ली अपने बच्चे को मुँह से उठाकर सुरक्षित स्थान तक ले जाती है, वैसे ही सच्चा गुरु अपने शिष्य को भवसागर से पार कराता है।
उन्होंने कहा कि साधना में सफलता बिना गुरु के सम्भव नहीं है, और न ही गुरु की खोज आवश्यक है — सद्गुरु स्वयं अपने योग्य शिष्य को ढूंढ लेते हैं। शिष्य का कर्तव्य है कि वह पूर्ण निष्ठा, संयम और नियम के साथ गुरु की आज्ञा का पालन करे। उन्होंने यह भी कहा, “गुरु दिखते हैं जब तक हम साधना कर रहे होते हैं, पर जब सम्पूर्ण समर्पण हो जाता है तब वही गुरु हमें अज्ञानरूपी अंधकार से बाहर निकालते हैं।”
मौनी बाबा जी को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि "उनका एक-एक शब्द ध्रुवतारा के समान है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए दिशा-दर्शक और प्रेरणा-स्रोत बना रहेगा।" उन्होंने गुरुकृपा, सत्संग और गुरुचरनों में लगन की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि “गुरुकृपा से ही शिष्य गुरुता का अधिकारी बनता है।”
कार्यक्रम का समापन श्रद्धा एवं भक्ति से ओतप्रोत वातावरण में हुआ। श्रद्धालुजनों ने गुरुवर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
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