कारगिल विजय दिवस: शौर्य की अमर गाथा
सीमा त्रिपाठी, शिक्षिका एवं साहित्यकार, लालगंज (प्रतापगढ़)
26 जुलाई... यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में गर्व और आंसुओं की मिश्रित भावना जगाने वाला दिन है। यह वह दिन है, जब भारतीय तिरंगा कारगिल की बर्फीली चोटियों पर शौर्य और बलिदान की कीमत पर लहराया था। यह दिन हमारे वीर सपूतों की अदम्य वीरता, अटूट साहस और मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है।
वर्ष 1999 में कारगिल की कठोर और ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान ने विश्वासघात कर घुसपैठ की। 3 मई को जब कुछ चरवाहों ने यह खबर भारतीय सेना तक पहुंचाई, तब राष्ट्र का हर सिपाही वतन की हिफाजत के लिए संकल्पबद्ध हो उठा। इसके बाद शुरू हुआ ‘ऑपरेशन विजय’ – एक ऐसा अभियान, जिसने साहस, रणनीति और समर्पण की मिसाल कायम की।
84 दिनों तक चली यह जंग आसान नहीं थी। तापमान शून्य से भी नीचे, दुश्मन की चालें खतरनाक, लेकिन भारतीय सैनिकों का हौसला आसमान छू रहा था। लगभग दो लाख सैनिकों ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया और 26 जुलाई 1999 को विजय का परचम लहराया।
इस विजय की कीमत बहुत बड़ी थी। कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे शूरवीर अपने प्राणों की आहुति देकर अमर हो गए। उनके शब्द “ये दिल मांगे मोर” आज भी हर भारतीय के दिल को गर्व से भर देते हैं। उनके साथ अनगिनत जवानों ने अपना लहू बहाकर इस राष्ट्र को यह संदेश दिया कि भारत की सीमाओं को कोई भी ताकत लांघ नहीं सकती।
आज जब हम 26वां कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं, तो यह केवल एक स्मृति नहीं है, बल्कि शपथ है – शपथ देश की एकता, अखंडता और सम्मान की रक्षा करने की। यह दिन हर नागरिक से यह कहता है कि हमें उन वीर जवानों के बलिदान को न भूलते हुए राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाना है।
कारगिल विजय दिवस, भारत मां की गोद में सोए उन शहीदों को नमन करने का दिन है, जिन्होंने हमें यह आजादी और शांति की सांस दी है। उनके बलिदान का कर्ज चुकाना संभव नहीं, पर उनकी याद में सिर झुकाना हमारा कर्तब्य है
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