बलिदान दिवस

 

बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लेख
(बलिदान: 24 जून, 1564)



भारतवर्ष की वीरांगनाओं की गाथा जब-जब कही जाती है, तब-तब रानी दुर्गावती का नाम गर्व और श्रद्धा से लिया जाता है। रानी दुर्गावती ने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति देकर नारी शक्ति का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनका बलिदान दिवस, 24 जून, भारतीय इतिहास में साहस, स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बन चुका है।

प्रारंभिक जीवन:

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को वर्तमान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजपूत वंश के चंदेल राजा कीर्ति सिंह के घर हुआ था। वह बचपन से ही साहसी, बुद्धिमान और युद्ध-कला में निपुण थीं। उनका विवाह गोंडवाना राज्य के राजा दलपत शाह से हुआ, जो गोंड वंश से थे। राजा दलपत शाह की मृत्यु के बाद रानी ने अल्पवयस्क पुत्र वीर नारायण के नाम पर शासन की बागडोर संभाली।

शासन और वीरता:

रानी दुर्गावती ने कुशल प्रशासिका के रूप में गोंडवाना राज्य को समृद्ध और शक्तिशाली बनाया। उन्होंने जनकल्याण, न्याय और धर्म की रक्षा को सर्वोपरि रखा। वे जनता में अत्यंत लोकप्रिय थीं और प्रजा उन्हें माता के रूप में मानती थी। उन्होंने अपने शासनकाल में अनेक मंदिर, तालाब, सड़कें और किले बनवाए, जिनमें ‘रानी ताल’ आज भी उनकी स्मृति को जीवंत करता है।

मुगलों से संघर्ष:

1564 में मुगल सेनापति आसफ खां ने गोंडवाना पर आक्रमण किया। रानी दुर्गावती ने अपने सीमित संसाधनों और वीर सैनिकों के साथ मुगलों के विशाल सैन्य बल का सामना किया। उन्होंने अपने साहस, युद्ध-कौशल और रणनीति से कई दिनों तक मुगलों को टक्कर दी। अंततः 24 जून 1564 को जब पराजय समीप जान पड़ी, तब उन्होंने आत्मसमर्पण के बजाय वीरगति को चुना और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए स्वयं को बलिदान कर दिया।

बलिदान की विरासत:

रानी दुर्गावती का बलिदान केवल एक युद्ध की हार नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और नारी-शक्ति की अमर गाथा है। उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो अंतिम समय तक अपने धर्म, संस्कृति और मातृभूमि के लिए अडिग रहे।

निष्कर्ष:

रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस हमें यह संदेश देता है कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो, मातृभूमि की रक्षा और आत्मसम्मान की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। आज भी उनकी गाथा स्कूलों, इतिहास की पुस्तकों और लोकगीतों में जीवित है। हमें उनके आदर्शों को अपनाते हुए समाज और देश के निर्माण में योगदान देना चाहिए।

रानी दुर्गावती अमर रहें!
वीरांगना की जय हो!


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