नकारात्मक दृष्टिकोण मन को दूषित कर अनेक तनाव को बढ़ावा देता है
सुमित-कुमति सबकेनकारात्मक दृष्टिकोण मन को दूषित कर अनेक तनाव को बढ़ावा देता है
प्रतापगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
किसी ने तुलसीदास जी से पूछा महाराज संपूर्ण रामायण का सार क्या है?तब तुलसीदास जी ने कहा-----जहां सुमति तहां संपत्ति नाना। जहां कुमति तहां विपत्ति निदाना।।अर्थात जहां सुमति होती है वहां हर प्रकार की संपत्ति सुख सुविधा होती हैं। और जहां कुमति होती हैं वहां विपत्ति दुख कष्ट पीछा नहीं छोड़ते हैं। सुमति का शाब्दिक अर्थ अच्छी बुद्धि है। सुमति और कुमति दोनों सबके मन में रहते हैं अच्छे विचार या सकारात्मक दृष्टिकोण हो तो मन निर्मल और तनाव मुक्त हो जाता है और इस प्रकार व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और सुख समृद्धि प्राप्त करता है इसके विपरीत नकारात्मक दृष्टिकोण मन को दूषित कर अनेक तनाव को बढ़ावा देते हैं और व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असफल होने लगता है। सुमति और कुमति का संबंध पुस्तकीय- ज्ञान और बड़ी-बड़ी उपाधियों से जुड़ा हुआ नहीं है। सुमति मन की वह दशा है जो सच्चरित्र व्यक्तियों के अधीन होता है। जब मनुष्य सहयोग, सहानुभूति, दया, ममता, परोपकार, ईमानदारी, तथा निस्वार्थ सेवा का भाव लेकर जीवन संघर्ष में उतरता है तो उसके भीतर सुमति का प्रकाट्य होता है। सुमति के होने पर मनुष्य सर्वजन हिताय और सर्वजन- सुखाय में लिप्त रहता है। वहीं कुमति मन की वह तामसिक शक्ति है जो मनुष्य के भीतर हिंसा, घृणा, स्वार्थ , कामवासना, क्रोध लोभ,मोह आदि दुर्गुणों को जन्म देती है। सुमति ही अच्छी बुद्धि का आधार है। सुमित के बिना तो ईश्वर की भक्ति भी संभव नहीं है। वहीं दूसरी और कुमति अहंकार की संतान है। इसलिए उसका अंत विनाशकारी होता है। कुमति का आना ही निश्चित रूप से प्रभु कृपा से वंचित होने का प्रमाण है। कहावत है -----" विनाश काले विपरीत बुद्धि" अर्थात् जब मनुष्य का विनाश निकट होता है तब उसकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती है। वहीं दूसरी ओर सुमति के आने से सद्विचार, सत्यता, ईश्वर भक्ति जैसे अनेकों उत्तम विचारों का उदय होता है। सुमति के होने पर अहंकार नहीं होता है। इसमें विनम्रता शिष्टता एवं सदाचार समाहित रहता है। सुमति का प्रमाण व्यक्ति के आचरण एवं व्यवहार से मिल जाता है। प्रत्येक विद्वान के भीतर सुमति हो या आवश्यक नहीं है क्योंकि रावण बहुत बड़ा विद्वान था किंतु कुमति के मोहपाश में जकड़ा हुआ था। कुमति के कारण व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह निकृष्ट कार्य करने लगता है। वह स्वार्थी हो जाता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है। कुमति व्यक्ति के दुख का कारण बनती है। अंत में निष्कर्ष यही निकलता है कि सुमति और कुमति सबके मन में विराजमान रहती है। अर्थात् सबके मन में अच्छे और बुरे विचार दोनों रहते हैं। जब अच्छे विचार आएंगे तो समृद्धि आएगी और जब बुरे विचार आएंगे तो विपत्ति आएगी ।इसी प्रकार सकारात्मक दृष्टिकोण हो तो मन निर्मल और तनाव मुक्त रहता है। और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका
लालगंज प्रतापगढ़
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