प्रयाग तीर्थों का राजा है

 

प्रयाग तीर्थों का राजा है

ध्यान ही पाप का अन्तिम समाधान 


महामण्डलेश्वर स्वामी भास्करानन्द


सिकन्दरपुर (बलिया)

तहसील क्षेत्र सिकन्द्रपुर के दुहा बिहरा ग्राम में चल रहे. 108 कुण्डीय कोटि होमात्मक अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ में व्यासपीठ से सुधी श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी भास्कसनन्द जी ने अपने उद्‌बोधन में कहा कि महादेवजी आद्यन्त मंगलकारी हैं। अतः मंगलार्थ उनकी शरण में जाय। सुरवृन्द अमृत पीकर देव कहलाये जबकि विषपान कर कैलासपति महादेव कहलाये। शिवजी सृष्टि, पालन, संहार, तिरोधान व अनुग्रह करते कराते हैं।

वक्ता स्वामी जी ने कहा कि प्रयाग तीर्थों का राजा है, वहाँ सुनी गयी कथा; श्रोता को भगवान की और उन्मुख करती है। त्रिवेणी संगम का रहस्य यों है कि जैसे वहाँ गंगा यमुना, सरस्वती ऐका संगम पावनता प्रदान करता है, यदि वैसे ही मानव शरीर में स्थित इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियों का संगम हो जाय तो आपको परमात्मा तक जाने से कोई रोक नहीं सकता। यज्ञ में भी कुण्ड, अग्नि एवं आहुति का होना जरूरी है। प्रयाग में सन्त समागम होता है, सूत जी जैसे बेद- शास्त्र मर्मज्ञ सन्त कथा कहते हैं, इनको सुनने से तृप्ति नहीं होती। कथा-श्रवण से अरुचि हो जाय तो समझो कथा सुनी ही नहीं गयी।

कलियुग में जीवोध्दार कैसे हो ? इस प्रश्न के उत्तर में सूतजी ऋषियों से कहते हैं कि कलिकाल में छिद्रान्वेषी अर्थात् निन्दक बहुत हैं किन्तु जिसकी निन्दा की जाती है उसके पाप निन्दक के सिर चढ़ जाते हैं। निन्दक आपकपापों का प्रक्षालन ही करता है, अतः कहा गया- निन्दक नियर राखिये। शरीर व संसार नश्वर है, शरीर से परे चिदानन्द रूप आत्मसन्दव ही शाश्वत है जिसे परमात्मा से ओड़ना है, मोहजनित पापकर्म ही इसमें बाधक है जबकि ध्यान ही पाप का अन्तिम समाधान है, लौकिक पारलौकिक सिध्दि हेतु ध्यान से बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं। हालाँकि भगवन्नाम का सुमिरण संकीर्तन भी प्रभु प्राप्ति का सुगम साधन वर्णित है। लयबध्दता के साथ प्रभु का नामोच्चारणा है, एतदर्श भक्त में भगवान के प्रति श्रब्दा-विश्वास और भाव-प्रवणता होनी चाहिए। भगवान के निष्कल और सकल इन दो रूपों में किसी के प्रति आस्था दृढ कर सकते हैं। अनादि परमात्मा का आदि और अनन्त प्रभु का अन्त नहीं है। स्वामी जी ने द्वादश ज्योतिर्लिंगों के कथा-प्रसँग में बताया कि लोभ ही पाप का मूल है, इसी प्रकार असत्य के समान को अन्य पाप भी नहीं है और न तो सत्य के समान दूसरा कोई धर्म है। अतः ध्यान रहे कि सब कुछ चला जाय किन्तु सत्य न जाय ।


जिस धरा पर हो रहा है यह राजसुय यज्ञ वह धरा इन मनीषियों की है


Post a Comment

0 Comments