भक्तों के जीवनाधार हैं भगवान

 भक्तों के जीवनाधार हैं भगवान


सिकन्दरपुर (बलिया)


- साध्वी सरोज बाला'

बलिया -  सरयू तटवर्ती ग्राम दूहा बिहरा में चल रहे आध्यात्मिक स्वरूप सम्पन्न अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ में आज की कथा को पूर्व की कथा से जोड़ते हुए कथा-प्रवाचिका साध्वी सरोज बाला ने कहा कि गोकर्ण ने प्रेतयोनि को प्राप्त धुन्धकारी की मुक्ति के निमिन्त गया तीर्थ में पिण्डदान किया किन्तु परिणाम शुन्य निकला । अन्ततः श्रीमद्‌भागवत कथा सुनाकर महात्मा गोकर्ण ने उसे सद्‌गति प्रदान की। वस्तुतः पिण्ड अर्थात् शरीर को, दान अर्थात् (परमात्मा के कार्यों में लगा देना) अर्पण कर देना ही यथार्थ पिण्डदान है। अतः सिद्ध है कि हरिनाम का प्रतिपल स्मरण ही जीवन्त सत्य है, इस सम्बन्ध में कहा भी गया है- सत् हरि भजन जगत सब सपना।' इस नश्वर पञ्चभौतिक तन का भरोसा ही क्या?-

क्षणभंगुर जीवन की कलिका कल प्रात को जाने खिली न खिली, मलया गिरि के शुचि शीतल मन्द सुगन्ध समीर झिली नझिली। कलिकाल कुठार लिये खिलता तन नर्म से चोट मिली न मिली, कह ले हरिनाम अरी रसना ! फिर अन्त समय में हिली न हिली ।।
परमात्मा सृष्टि के पहले भी था, आज भी है, और भविष्य में भी रहेगा। वह सत् चित् आनन्द के त्रैतात्मक स्वरूप में आबध्द है। स्पष्ट है कि जो वस्तु सत्य होगी बह असत्य कभीन होगी, उसमें स्फुरणा होगी और जिसमें स्फुरणा होगी उस वस्तुमें आनन्द भी होगा। सत्य सबसे बड़ा धर्म है धर्म न दूसर सत्य समाना, आगम निगम पुराण बखाना।" इसी भाँति जिस्का कथन मिथ्या न हो वही नारद है। आज लोगों में प्रेम नहीं है, सत्यता भी नहीं, अतः लाखों सुख-संसाधन होने पर भी संसार दुःखी है। ऐसे ही जओ अपनी इन्द्रियों के माध्यम से भक्तिरस का पान करे वहीं गोपी है। गोभिः (इन्द्रियैः) भक्तिरस पिवति सा गोपी।"
पूज्य गुरुदेव श्री मौनी बाबा जी महाराज द्वारा लिखित संकलित 'राजसूय महायज्ञ और उसका आध्यात्मिक स्वरूप' शीर्षक पुस्तक का विमोचन विगत दिनों महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी भास्करानन्द जी महाराज द्वारा हुआ जिसे भक्तजन बड़ी श्रद्धा से पढ़-सुन रहे हैं। भक्तिभूमि वृन्दावन से पधारों साध्वी सरोज बाला जी का भागवत प्रवचन सुनने के लिए श्रद्धालुओं की बेशुमार भीड़ उमड़ रही है। घनी ठण्ड के मौसम में भी श्रद्धालुजन कथा सुनने दौड़े चले आते हैं।


श्री सूत-शौनकादि ऋषियों के वात्तीलाप पर आधारित गम्भीर प्रसंगों को साध्वीजी ने विदुत्तापूर्ण शब्दावली में चारूतर ढंग से प्रस्तुत किया।

बताया कि अजन्मा परमात्मा का जन्म तो होता नहीं, हाँले अवतार जरूर लेते हैं।उनका अवतार तब होता है जब धर्म की हानि और दुष्टों का अत्याचार बढ़ जाता है। वे सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का संहार करते हैं। श्रीमद्‌भागवत श्रीहरि का बांग्मय स्वरूप है। यह एक ऐसा पूर्ण परिपक्व सरस सुमधुर फल है जिसका कुछमी अंश त्याज्य नहीं है। उस प्रखर वक्ता सद्‌‌गुरु की बलिहारी है जो कि भागवत कथा के माध्यम से भक्तों को भगवान तक पहुँचाते हैं- बलिहारी वा की, जिन वा गुरु गोविन्द दियो बताय । परमात्मा वह वस्तु है जिसके आगे किसी की एक नहीं चलती चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली हो "जाको राखे साइ‌याँ, मारि संक ना कोय, बालन बाँका करि सकें, जो जग बैरी होय।" सच्चे अर्थों में भक्तों के जीवनाधार है भगवान । वस्तुतः भगवान ही सन्त-सद्‌गुरु रूप में आकर भक्त-शिष्यों का उद्धार करते हैं। सच्चा भक्त अपने जीवन में भगवान से पग-पग पर दुःख माँगता है ताकि पल-पल प्रभु की याद आती रहा कृष्णस कुन्ती यही तो माँगी थी।

मञ्च पर लगी बालकृष्ण की झाँकी देख ओता गण प्रफुल्लित हो गये। 'विदुर घर ये रे बांके विहारी' - इस भजन की सुन्दर प्रस्तुति। झूमने को विवश हो गये। भावमय संगीत की सुमधुर स्वर लहरियों से भला किसके हृदय-सागर में आनन्द की तरंगें नहीं उठती ! ज्ञानयज्ञ-मण्डप में आबाल-वृद्ध नर-नारी सभी लोग तालियाँ बजा-बजा, झूम-झूम भजन कीर्तन बीसी गा रहे थे। सजी-सजायी आरती के थाल थाल एकसाथ ऊपर उठते, नीन्ते आते, मानो महारास उत्तर आयी हो । श्रद्धालु भक्तों ने नमित भावसे गुरु गोविन्द की आरती उतारी, स्तुति करी जिसकी छटा देखते ही बनती थी। शुक्रवार की शाम श्रीहरि के नाम कथा प्रवचन चल ही रहा ध्था कि एक अति अलौकिक रहस्यमयी घटना देख-सुनकर सारा भक्त समाज आश्चर्य चकित रह गया। हुआ यह कि कतिपय श्रध्दालुजन सरयू तट दीपदान कर आये थे। हवा शान्त हैनि से दीपमालिका जगमगा रही थी। उसी समय रेत के ऊपर अचानक एक नैसर्गिक शिवलिंग उभर आया जिसमें अयोनिज सिध्द‌योगी श्री वनखण्डी नाथ जी महाराज की मधुर मुस्कान भरी छवि प्रकट हुई और कुछ ही समय में अदृश्य हो गयी। उक्त रहस्यमयी घटना की पुष्टि तब हुई जब सञ्चालन कर रहे श्री सत्यनारायण यादव की मोबाइल में सुरक्षित वह अप्रत्याशित छवि देखी गयी। निश्चय ही मैया सरयू का किनारा रहस्यों से भरा है

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