शिव जी ने क्यों किया विष का पान
प्रतापगढ़ लखनऊ उतरप्रदेश
भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। उनके गले में नाग, हाथों में डमरू, और त्रिशूल विराजे हैं। इन्हें कई नामों से जाना जाता है। जैसे महादेव भोले शंकर, महेश, रुद्र और नीलकंठ आदि। आइए आज हम जानते हैं कि भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है।
समुद्र मंथन में बहुत से रत्न तथा बहुमूल्य वस्तुएं निकली जिसको देवताओं और दोनवोंने आपस में बांट लिया परंतु इसमें एक चीज ऐसी निकली जिसको कोई भी लेने को तैयार नहीं था और वह था हलाहल विष। इस विष की एक बूंद पूरी सृष्टि में तबाही मचा सकती थी। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया देवताओं और दैत्य सहित ऋषि, मनुष्य, गंधर्व, यक्ष, आदि उस विष की गर्मी से जलने लगे। उस विष को कोई भी लेने को तैयार नहीं था। तब परेशान देवता भगवान शिव के पास गए और उनकी मदद मांगी भगवान शिव ने कहा कि विष से भरा घड़ा वह खुद पियेंगे। शिवजी ने घड़ा उठाया और देखते ही देखते पूरा विष पी गये। जिस समय भगवान शिव विषपान कर रहे थे। उस समय विष की कुछ बूंदें नीचे गिर गई जिन्हें बिच्छू सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने ग्रहण कर लिया इसी विष के कारण वह विषैले हो गए। भगवान शिव ने विष को गले के नीचे नहीं जाने दिया विष को गले में रखने के कारण ही वो नीलकंठ कहलाए ।
सीमा त्रिपाठी
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका
लालगंज प्रतापगढ़
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