विशेष रिपोर्ट : गोरखनाथ मंदिर में परशुराम तिवारी और द्वारिका तिवारी की ऐतिहासिक भेंट
सामाजिक और धार्मिक उत्थान को लेकर बनी नई संभावनाएँ
गोरखपुर
गोरखनाथ मंदिर, जिसे उत्तर भारत में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक चेतना का भी केंद्र माना जाता है, वहां हाल ही में एक विशेष मुलाक़ात ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। इस मुलाक़ात में विश्व हिन्दू महासंघ (शिक्षक एवं बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ) उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष परशुराम तिवारी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के विशेष एवं मंदिर प्रशासनिक प्रमुख द्वारिका तिवारी आमने-सामने बैठे।
यह भेंट केवल औपचारिक नहीं रही, बल्कि इसमें प्रदेश और समाज के उत्थान की गहरी रूपरेखा पर गंभीर विमर्श हुआ।
कौन हैं परशुराम तिवारी?
बलिया जनपद की सिकंदरपुर तहसील के ननहुल गाँव निवासी परशुराम तिवारी शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में लम्बे समय से सक्रिय हैं। विश्व हिन्दू महासंघ (शिक्षक एवं बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ) के अध्यक्ष के रूप में वे पूरे प्रदेश में शिक्षकों और बुद्धिजीवियों को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।
उनका मानना है कि समाज की असली ताक़त शिक्षा और संस्कृति में निहित है, और यदि शिक्षक व विचारक संगठित हों तो राष्ट्र की दिशा बदल सकता है
मुलाक़ात में क्या हुआ?
🔹 परशुराम तिवारी ने गोरखनाथ मंदिर द्वारा शिक्षा, चिकित्सा, गौ-सेवा और गरीबों के उत्थान के लिए चल रही गतिविधियों की सराहना की।
🔹 द्वारिका तिवारी ने विस्तार से बताया कि कैसे मंदिर धार्मिक परंपराओं को जीवित रखते हुए समाज में सेवा की भावना को आगे बढ़ा रहा है।
🔹 दोनों नेताओं ने हिंदुत्व की मूल भावना, सांस्कृतिक विरासत और युवाओं को सही दिशा देने के लिए सामूहिक प्रयासों की ज़रूरत पर बल दिया।
🔹 यह तय किया गया कि आने वाले समय में विश्व हिन्दू महासंघ और गोरखनाथ मंदिर मिलकर शिक्षा और समाजसेवा से जुड़े कई अभियान और कार्यक्रम आगे बढ़ाएँगे।
क्यों महत्वपूर्ण है यह भेंट?
गोरखनाथ मंदिर केवल पूजा-पाठ का स्थान नहीं, बल्कि योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में सामाजिक चेतना और राष्ट्रवाद का केंद्र बन चुका है। वहीं, विश्व हिन्दू महासंघ पूरे प्रदेश में हिंदू समाज को संगठित करने में अहम भूमिका निभा रहा है।
ऐसे में इन दोनों संस्थानों के बीच बढ़ता संवाद और सहयोग प्रदेश की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक एकता को नई दिशा देगा।
भविष्य की संभावनाएँ
यह मुलाक़ात संकेत देती है कि आने वाले दिनों में—
✅ शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं।
✅ युवाओं को राष्ट्र निर्माण और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने के लिए विशेष कार्यक्रम होंगे।
✅ समाजसेवा और गौ-सेवा जैसी गतिविधियों को और तेज़ किया जाएगा।
✅ बुद्धिजीवियों और संत समाज के बीच समन्वय को नया आयाम मिलेगा।
निष्कर्ष
गोरखनाथ मंदिर की यह मुलाक़ात केवल दो व्यक्तियों की भेंट नहीं, बल्कि समाज और धर्म के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। परशुराम तिवारी और द्वारिका तिवारी का संवाद आने वाले समय में प्रदेश में सांस्कृतिक जागरण, सामाजिक उत्थान और धार्मिक चेतना की एक नई लहर को जन्म दे सकता है



0 Comments