गुरुकृपा प्राप्त्यर्थ पात्रता अनिवार्य

 गुरुकृपा प्राप्त्यर्थ पात्रता अनिवार्य


अतुल कृष्णभामिनी शरण'



सिकन्दरपुर /बलिया(राष्ट्र की संपत्ति)


तहसील क्षेत्र सिकन्दरपुर के दुहा बिहरा ग्रामान्तर्गत अद्वैत शिवशक्ति परमधाम परिसर में जारी शुरुपूजा या महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को वैदिक यज्ञमाप में आवाहित देवों और देवशक्तियों का पूजनाचेन, अग्नि-स्थापन एवं एकनादि कार्य वैद‌विधान से किये गये। सम्पूर्ण वातावरण वेदध्वनि से निनादित तथा होमगन्ध से सुवासित रहा


उधर भक्तिभूमि वृन्दावन से यहाँ पधारे  अतुल कृष्ण भामिनी शरण जी महाराज ने ज्ञानयज्ञ-मण्डप में सुधी श्रोताओं को सम्बोधित किया।गुरुतत्त्व पर गम्भीरतापूर्वक प्रकाश डालते हुए विद्वान वक्ता ने कहा कि यद्यपि भक्तकवि गोस्वामी तुलसीदास ने स्वान्तः सुख्खाय साहित्य का सृजन किया किन्तु जब स्व की बात आती है तो वहाँ संसार खड़ा हो आता है, अतएव पहले स्व' को जानना होगा तभी अन्य की जान सकते हैं, प्रश्न ही अपना उत्तर खोज लेता है। संसार की और नबढ़‌कर हमें स्व' को सुधारना चाहिए क्योंकि आत्म-परिष्कार की साधना ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। बम विस्फोट से कुछ ही लोग मरते हैं जबकि कुविचार से संसार मर्माहत होता है। कुविचारों को मिटाने के लिएही सन्त-सद्‌गुरु की आवश्यकता होती है। पर ध्यान रहे गुरुतत्त्व से जुड़ने के लिए विद्युत-तन्त्री के समान सर्वप्रथम मैनुअल को जोड़ना होगा तभी प्रकाश होगा। गुरुकृपा की प्राप्ति हेतु सत्पात्र होना जरूरी है।


वक्ता ने रेखांकित करते हुए कहा कि मृत्यु के पश्चात् मोक्ष प्राप्ति की कल्पना तथ्यहीन, निराधार और भ्रामक है। जब वर्तमान से जुड़ते हैं तो आपके साथ सबका कल्याण होता है। वस्तुतः मोक्ष क्या है. यह विषय विचारणीय है। मन, प्राण और शरीरेन्द्रियों का संयमन संगम ही वास्तविक मोक्ष है। सब इ । सब कुछ ठीक-ठाक हो किन्तु महापुरुषों का संग ने हो तो सब कुछ बेकार है। गुरु के साथ (शिष्य का) पहले मैत्री-भाव होना चाहिए ताकि हृद‌यगत भावों की अभिव्यक्ति आसानी से हो सके। अर्जुन ने पहले ऐसा ही किया और बाद में समर्पण - तब मे भक्तः, तव में शिष्यः। अन्त में पूर्ण समर्पण के साथ पश्चात्ताप करने लगा -"सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति । महाभारत के पूर्व प्रभु के पूछने पर कहा- में लेने नहीं, देने आया था, मेरा समर्पण स्वीकार करें। अन्ततः कृष्णचन्द्र अर्जुन के सारथी बने। केशव को भक्त हितार्थ सब कुछ त्यागना पा, अपना प्रणभी तोहू‌ना पड़ा, उन्होंने पाण्डवों को विजयी बनाया। शरणागति पुष्ट हो जाने पर भगवान स्वभक्त की सारी व्यवस्था करते हैं। योगदोमं वहाम्यहम्। गुरु-गोविन्द में कोई भेद नहीं।

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