शीर्षक: बट सावित्री व्रत: पतिव्रता नारी की शक्ति और वटवृक्ष की पूजा का पर्व
सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेमगाथा
संवाददाता विशेष
आज संपूर्ण भारतवर्ष में विशेष रूप से विवाहित हिंदू महिलाएं बट सावित्री व्रत का पालन कर रही हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना से वट (बड़) वृक्ष की पूजा करती हैं।
कथा का सार: सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेमगाथा
इस व्रत की जड़ें महाभारत से जुड़ी एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा में निहित हैं। कथा के अनुसार, राजकुमारी सावित्री ने सत्यवान नामक वनवासी राजपुत्र से विवाह किया। भविष्यवाणी के अनुसार सत्यवान का जीवन अल्पकाल था, परंतु सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प, भक्ति और बुद्धिमत्ता से यमराज को भी झुका दिया। उसने अपने पति के प्राण वापस लेकर यह सिद्ध किया कि सच्ची नारी शक्ति अडिग संकल्प से मृत्यु को भी पराजित कर सकती है।
वटवृक्ष की पूजा का महत्व
वटवृक्ष को हिंदू धर्म में अमरता, स्थिरता और रक्षा का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष तीन प्रमुख देवों—ब्रह्मा, विष्णु और शिव—का प्रतीक भी है। महिलाएं इस दिन वटवृक्ष के चारों ओर कच्चा धागा लपेटते हुए 108 बार परिक्रमा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करती हैं।
आधुनिक युग में प्राचीन परंपरा की प्रासंगिकता
आज के वैज्ञानिक युग में भी यह पर्व समाज में नारी की आस्था, श्रद्धा और पारिवारिक मूल्यों को सशक्त करता है। साथ ही वटवृक्ष जैसे पर्यावरण संरक्षक वृक्षों के संरक्षण का भी संदेश देता है।
समाज में जागरूकता और सामूहिक आयोजन
देश के विभिन्न हिस्सों में मंदिरों, पार्कों और सामुदायिक स्थलों पर इस व्रत के सामूहिक आयोजन किए जा रहे हैं। महिलाएं पारंपरिक परिधान में सज-धज कर इस धार्मिक आयोजन में भाग ले रही हैं, जिससे वातावरण में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हो रहा है।
सम्पर्क सूत्र 94507775773
घनश्याम तिवारी पत्रकार सिकन्दरपुर बलिया उत्तरप्रदेश
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