गुरुदेव आपकी याद आती रहेगी जब यह चित्र सामने आते रहेंगे
बलिया आजमगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
जिनके पितामह अपनी बैठक में एकतारा बजा-बजाकर भावमग्न भजन-कीर्तन करते हुए बैठे ही बैठे पार्थिव शरीर छोड़कर निजधाम-शिवधाम - परमधाम को चल बसे, ऐसे उनके पवित्र कुल में महनीय सन्त-महापुरुष का उद्भव क्यों न हो? पूज्य पिता के साथ सात वर्ष की अल्पायु में विनोवा जैसे महान सन्त का सान्निध्य अवश्य ही ए एक विलक्षण घटना थी।
बालक ईश्वरदास नित्य की भाँति अपने अध्ययन कक्ष में पाठ याद कर सो रहे थे, अचानक आँखें खुलीं तो देखा कि बिना किसी प्रकाश उत्पादक स्रोत के कमरा दिव्य अलौकिक प्रकाश से देदीप्यमान था। दरवाजा खोलकर उन्होंने बाहर देखा तोसर्वत्र रात्रि का गहन अन्धकार फैला हुआ था किन्तु अन्दर फिर वही प्रकाश। बालक ने उसीक्षण संकल्प ले लिया उस दिव्य देवी प्रकाश के उत्पादक स्रोत का पता लगाने के लिए। एक दिन वह भी आया जब वे बड़े होकर कालेज से ही सन्ध्या समय परम वैराग्य रूपी पंख के सहारे घर-द्वार सब कुछ छोड़-छाड़कर अध्यात्म के अनन्ताकाश में उड़ चले।
वे सद्गुरु की खोज में भक्तिभूमि वृन्दावन पहुँचे; वहाँ ब्रह्मकुण्ड के सन्निकट श्री साम्ब सदाशिव कुञ्ज' के संस्थापक परमगुरु श्री महेन्द्रमुनि जी महारान के शरणापन्न हुए। कुछ ही दिनों बाद सन् १६६६ ई० में परमगुरु श्री महेन्द्रमुनि जी सबको आशीर्वाद देकर परमधाम सिधार गये किन्तु परमधाम-गमन के पूर्व जब वे सशरीर विद्यमान थे तो संकेत रूप में आदेश दिया था-"प्रिय ईश्वरदास । मेरे बहुत से अधूरे काम तुमको पूर्ण करने हैं। हमारे पूज्य गुरुदेव ने कहा- प्रभो! आज्ञा दीजिए, वे कौन-कौन कार्य हैं, मुझ दास को बतान की कृपा कीजिए।" 'उत्तर मिला- समय आने पर सब पत्ता मिल जायेगा।
अपने पूज्य गुरु के शरीरान्त बाद अधीर होकर आप गुरु स्थान वृन्दावन से काश्मीर जाना चाह रहे थे क्योंकि आपके एक तरुण गुरुभाई कश्मीर जा चुके थे। 1 इस सिलसिले में आप दिल्ली रेलवे प्लेटफार्म पर बैठे थे कि एक पुलिस-= -कर्मी ने कहा- बाबाजी! यह चादर मुझे दे सकते हो क्या? कहने की देरथी कि आपने अपने कन्धे पर रखी चादर उसे दे दी। ॥ चादर लेकर पुलिस नौ दो ग्यारह हो गया। स्वामी जी का विचार बदला, आप ग्वालियर आ गये। वहाँ इहा-निवासी भक्तसुमन बालचन्द जी से भेंट हुई। सन्तसेवी बालचन्द जी जियाजी काटन मिल के फोल्डिंग खाता में कार्यरत थे। दानों के विचार मिलने से घनिष्ठता बढ़ती गयी। ड्यूटी के बाद खाली समय में सत्संग होता था। एक रात दोनों लोग अपने-अपने बिस्तर पर विश्राम कर रहे थे कि स्वामी जी को स्वप्न में वृद्ध सन्त ने औदेश दिया-अरे! यहाँ क्या सोये पड़े हो? आओ-जाओ सरयू किनारे तुम्हारी खोज हो रही है।" नींद खुली तो स्वप्न की बात बताकर सबसे विदा ले[ पृष्ठ २]
चित्रकूद, गोरखपुर आदि तीर्थों में भ्रमण करते भृगु भूगि बलिया पहुँचे। यहाँ मलबार एकसार सात-आठमाह रहकर कुहा के पूरब सुनसान सरयू-तट आ विराजे । वर्ष १८७२ में आपने मौन महाव्रत का अनुष्ठान आरम्भ किया, स्वनियन्त्रित सीमाबद्ध स्थान में सौ कदम के घेरे में रहकर प्रादशवर्षीय मौन महाव्रत की अन्तर्मुखी साधना जुलाई १८८४ की, अतः मौनी बाबा 'नाम से आप अधिक विख्यात हुए। में पूरी की, 3
आपने अपनी उक्त तपस्थली में पक्का कुआँ, शिव पञ्चायतन मन्दिर, गुरुधाम परमधाम आदिकी समय-समय पर स्थापना की। अद्वैत शिवशक्ति सम्प्रदाय का प्रवर्तन तथा परमधाम पीठ की स्थापना विद्वानों के लिए चर्वणा की वस्तुएँ हैं। पूज्य महाराजश्री के समस्त कार्य अद्वितीय हैं और अलौकिकता से भरे पूरे हैं। आपन सिकन्द्रपुर तथा पहाड़पुर, (निकट बेल्थरारोड) के अतिरिक्त दूरवर्ती दिक्षेत्र बीजापुर (छत्तीसगढ़) भी उप आश्रमों का निर्माण किया है। आपने तीस-पैंतीस आध्यात्मिक पुस्तकों का प्रणयन किया है, उनमें विशेष प्रसिध्दि अमर कथा' को मिली है। इसके प्रमुख पात्र (नायक) शिव और उनकी शक्ति है, वे पृथक भासते हुए भी एक है, अद्वैत हैं।
श्री गुरु महाराज जी शताधिक याई पूर्ण कर शतक्रतु' उपाधि के अधिकारीहो चुके/ अभी-अभी आध्यात्मिक धरातल पर ४० दिवसीय एवं १०८, कुण्डीय कोटिहोमात्मक अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ के आयोजन हेतु आपका संकल्प पूरा हुआ है। यह यज्ञ सबसे पहले प्रेतारम्भ में सत्यवादी महाराज हरिश्चन्दु ने अयोध्या में तथा द्वापर के अन्तिम चरण में अजातशत्रु महाराज युधिष्ठिर ने इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) में पूर्ण किया था, यही महायज्ञ अब कलियुग के प्रथम चरण में पूज्यवरण गुरुवर श्री मौनी बाबाजी की कृपास पूर्ण हुआ। राजसूय यज्ञकत्ती राजागी सम्राट' पद से विभूषित किया जाता था। अतः राजसूय महायज्ञ सहित शताधिक यज्ञकत्ती पूज्य स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज को 'यज्ञ सम्राट 'कहना सर्वथा न्यायसंगत होगा।
चूँकि ईश्वरीय विधान अटल है, अत: उक्त महायज्ञ के लिए संकल्पित पूज्य श्री मौनी बाबा जी महाराज रजसूय यज्ञारम्भ के समय अस्वस्थ हो गये, इलाज चला किन्तु सुधार नहीं हुआ, स्वास्थ्य बिगडूता गया। गुरुभक्तों द्वारा एक अव्यक्त अभाव के साथ वज्ञ का सञ्चालन होता रहा। महाराज श्री यज्ञ-पूर्णाहुति की पल-पल प्रतीक्षा कर रहे थे। बाल सन्त श्री शिवेन्द्र ब्रह्मचारी उड़िया बाबा" प्रतिनिधि बनकर मुख्य यजमान की भूमिका निभा रहे या रविवार १६ जनवरी को उक्त उड़िया बाजा ने यज्ञ भगवान को पूर्णाहुति अर्पित की। उसी रात ब्रह्ममुहूर्त में गुरुदेव का पार्थिव शरीर एम्बुलेन्स द्वारा लखनऊ से परमधामपीठ - ड्हा आ पहुँचा, सोमवार २० जनवरी२०२५ को परमधाम-परिसर में अश्रुपूर्ण नेत्रों से उ उस महा विभूति को समाधिस्थकिया गया। उसी दिन से उनकी स्मृति में मम प्राणनाथ शिवशक्ति प्रभो, अज पारब्रह्म अद्वैत विभो' अखण्ड संकीर्तन आरम्भ हुआ, जो पूज्य गुरुवर के दिव्य भण्डारा तक चलेगा, शनिवार ०१ फरवरी को भण्डारा सुनिश्चित है। गुरुवर की पावन स्मृति सदा-सर्वदा बनी र रहेगी।
0 Comments