ख्वाहिश हो या ना हो पर बुढ़ापा सबको आता है

ख्वाहिश हो या ना हो पर बुढ़ापा सबको आता है


 बुढ़ापे की ख्वाहिश 

प्रतापगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश


बचपन के बाद जवानीऔर जवानी के बाद बुढ़ापा आता ही है। कोई कितने ही यत्न कर ले समय बदलता ही जाता है कभी एक समान नहीं रहता है। इसी तरह उम्र भी अपने समयानुसार  बढ़ती ही जाती है और अंत में बुढ़ापे की दहलीज पर लाकर खड़ा कर देती है। आपकी ख्वाहिश हो या ना हो पर बुढ़ापा सबको आता है। बुढ़ापा बुरा नहीं है पर डर सबको लगता है। आखिर क्यों क्योंकि इंसान की कार्य क्षमता घटने लगती है दूसरों के सहारे की जरूरत पड़ने लगती है। अपनी ही शरीर स्वयं का साथ नहीं दे पाती है। हम बहुत कोशिश करके भी सक्षम नहीं रह जाते हैं शायद इसीलिए बुढ़ापे की ख्वाहिश किसी को नहीं होती है। कुछ लोगों का कहना है कि बुढ़ापा और बचपन दोनों एक समान होता है क्योंकि दोनों में व्यक्ति दूसरों पर आश्रित होता ह वह स्वयं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता है। अपनी शारीरिक दुर्बलताओं के कारण अपने दैनिक क्रियाओं के लिए किसी अन्य पर निर्भर हो जाता है। उम्र के बढ़ते कदम कब बुढ़ापे की ओर चले जाते हैं पता ही नहीं चलता बुढ़ापा यदि सुख में रहा तो आनंद ही आनंद और यदि बुढ़ापे में अपनों का प्यार और सहयोग न मिला तो काटना मुश्किल हो जाता है। जीवन का यह सफर किसी का सुखमय तथा किसी का दुखमय होता है। बुढ़ापे में इंसान सिर्फ और सिर्फ अपनों का प्यार चाहता है सभी लोग सम्मान पूर्व जीवन जीना चाहते हैं वहीं कुछ लोग बुढ़ापे में अपमान व निंदा का शिकार हो जाते हैं जिससे उनका जीवन नरक के समान हो जाता है। आजकल की पीढ़ी तो बूढ़े मां-बाप को वृद्धाआश्रम में भेज कर फुर्सत पा जाते हैं पर उन्हें नहीं पता की यह सबसे ज्यादा घटिया और निंदनीय कार्य है। बूढ़े मां-बाप को अपने पास ही रखना चाहिए और प्यार से उनकी देखभाल करनी चाहिए। क्योंकि इस संसार में तुम्हें लाने वाले तुम्हारे मां-बाप ही हैं। बुढ़ापा अनुभव की एक किताब है। और हमारे बूढ़े मां-बाप पुराना वट वृक्ष।जैसे वटवृक्ष दिनों दिन घना होकर शीतल छाया देता है। उसी तरह बूढ़े मां-बाप भी अपने बच्चों को बहुत कुछ देकर जाते हैं। इसलिए बुढ़ापे में बूढ़े मां-बाप की खूब देखभाल व सेवा करके उनका जीवन सुखी बनाना चाहिए और उनका ढेरों आशीर्वाद लेकर अपना जीवन सफल व सार्थक बनाना चाहिए। यदि बच्चे बूढ़े मां-बाप को प्यार व सहयोग देंगे तो ऐसे बुढ़ापे से किसी को डर नहीं लगेगा वहीं दूसरी ओर बुढ़ापे में तिरस्कार, अपनों से दूर, डांट, फटकार, अपमान भरी जिंदगी, से सभी को डर लगता है इसलिए बच्चों को चाहिए कि अपने मां-बाप के अंतिम पड़ाव( बुढ़ापे) में खूब सेवा सत्कार और प्यार देकर उनका जीवन सुखमय करने के साथ-साथ अपना जीवन भी सफल व सार्थक बनाना चाहिए।
सीमा त्रिपाठी 

शिक्षिका साहित्यकार लेखिका 

लालगंज प्रतापगढ़

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