जीवन में बदलाव नहीं तो कथा-श्रवण बेकार

 जीवन में बदलाव नहीं तो कथा-श्रवण बेकार


जिरांगी गौरी


सिकन्दरपुर  बलिया आजमगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश

सिकंदरपुर तहसील क्षेत्र के सरयू तट पर स्थित दुहा विहरा गांव में 908 कलशों वाले अद्वैत शिवयक्ति राजसूय महायज्ञ को देखने के इच्छुक श्रद्धालुओं की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। यह महायज्ञ एक प्रकार से सूक्ष्म रूप से महापात्र का रूप धारण कर रहा है। श्री वनखंडी नाथ जी एवं उक्त यज्ञ के आयोजक एवं मुख्य पुजारी पूर्व मौनव्रती स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज की अदृश्य कृपा भक्तों पर बरस रही है। सुबह से लेकर शाम तक और देर रात तक श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के लंबे पन्न टनों में एक साथ बैठकर लंगर (महाप्रसाद) ग्रहण कर रहे हैं। यहां शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया है। सेवादार घर-घर जाकर आगंतुकों की सेवा कर रहे हैं। वास्तव में ऐसा सौभाग्य जन्म-मृत्यु के सर्वोत्तम संस्कारों से प्राप्त होता है, ऐसा शायद ही कोई हो जिसे इस 'महाकुंभ' से परोक्ष रूप से लाभ न मिल रहा हो। ध्वनि विस्तारक यंत्रों से वातावरण गुंजायमान है।


रविवार को सान्ध्य सत्र में व्यासपीठ से गौरांगी गौरी  ने सुधी श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए अं हुए अपने उद्‌बोधन में कहा कि शम्भु ने सर्वजन हिताय विषपान तो कर रलिया किन्तु उसे गले में ही रोक लिया ताकि हृदय में बसने वाले वाले प्रभु पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े किवल विष ही विष नहीं बल्कि संसार र में औरभी अनेक प्रकार के विष है जिनसे सज्जनों पर दुष्प्रभाव पकता है। संसार को इन से मुक्ति चाहिए।


बने रहें उन्होंने आगे कहा कि यदि आपको अच्छा बने रहना है तो सर्वदा निश्चिन्त तथा भगवान की अविरल स्मृति बनाये रखें। निन्दक से कभी भी विचलित मत होइ‌ये क्योंकि वह आपकी बुराई का प्रक्षालन ही करता है। जिसकी निन्दा या बुराई होती है- वहीं आगे बढ़ता है। बुराई वहीं करता है जो आपकी बराबरी नहीं कर पाता। बुराती बुरा, यदि अच्छा भी करेंगे तो ऐसे लोग आपको छोड़ेंगे नहीं। जब कृष्ण तथा राम को नहीं छोड़ा तो और किसे छोड़ सकते? हाँ, भगवान की दृष्टिमें आप अच्छे बने रहें। जगत में बसना है किन्तु फँसना नहीं। हम सभी प्राणी कालरूपी अजगर के V मुख में हैं। यहाँ सब कुछ नश्वर है, स्थायी कुछ नहीं, मात्र सत्कर्म और हरिभजन ही साथ जाते हैं। कथा तो बहुर्ता से सुनी किन्तु जीवन में बद‌लाव नहीं आया तो कथा-श्रवण से क्या मतलब?


कहा कि यहाँ न कुछ तेरा है,न मेरा ।। साकार व निराकार यही दोनों प्रभु के पृथक-पृथक दो मुख्य स्वरूप मान्य हैं, हालाँकि यह प्रकरण गहन शोध का विषय है। भाव के भूखे भगवान को निश्छल प्रेम प्यारा रा है है। इन्द्रियातीत परमात्मा सब कुछ करते हुए भी अकत्ती अभोक्ता बने रहते हैं

Post a Comment

0 Comments