गुरु की आज्ञा मानने वाला लोक-परलोक में सर्वत्र सर्वदा सुखी-सानन्द रहता है
गौरांगी गौरी
सिकन्दरपुर (बलिया) आजमगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
जिस घर में पतिव्रता स्त्री हो और उसी घर में राक्षसी वृत्ति उतर जाय तो उस पतिव्रता का क्या हाल होगा? जालन्धर की पतिव्रता पत्नी वृन्दा के साथ यही हुआ। वृन्दा छली गयी। जब उसे अपने साथ हुए हल का पता चला कि उसके पति जालन्धर के वेश में परपुरुष ने उसके साथ छलपूर्वक दुष्कर्म किया तो उसने शाप दे दिया। छलिया ने भी उसे कास्पति होने का शाप दे डाला, उसने यह भी कहा कि तुम्हारे बिना मेरा भोग नहीं लगेगा । फलतः छलिया तो शालिग्राम पत्थर हुआ और वृन्दा ने अपने सतीत्व बल से स्वशरीर को भस्म कर दिया। उसकी भस्मी से एक पौधा निकला जिसे तुलसी' नाम से जाना गया। घर में तुलसी का पौधा होने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। उक्त उद्गार कथा-प्रवाचिका गौरांगी गौरी ने सरयू के दक्षिणी पुलिन स्थित ग्राम इहाँ बिहरा (डुहाँ) में आयोजित ४० दिवसीय और १०८ कुण्डीय अद्वैत शिवशक्ति राजसूय महायज्ञ में ज्ञानयज्ञ-मण्डप के व्यासपीठ से व्यक्त किया। कहा कि सद्गुरु - महिमा का बखान सबने किया है। वे महानता में ब्रह्मादिक पञ्चबह्म और अक्षरब्रह्म से भी परे स्थित परब्रह्म के समतुल्य हैं। गुरु की आज्ञा मानने वाला लोक-परलोक में सर्वत्र सर्वदा सुखी-सानन्द रहता है। सद्गुरु के आगमन से जीवनधारा सकारात्मक दिशा में मुड़जाती है। 1 सद्गुरु- कृपा से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। गौरांगी जी ने भगवान के अवतार के सम्बन्ध में कहा कि वे धर्म-रक्षार्थ हर युग में अवतार लेते हैं। भक्तों का भवभय दूर करना उनका मुख्य प्रयोजन होता है।
आगे कहा कि जब उनको आना होता है, तो सारी परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाती है। मनु-शतरूपा जब प्रभु से उनके ही समान पुत्र माँगते हैं- चाहउँ तुम्हहिं समान सुत' तो भगवान कहते हैं- मेरे समान कोई नहीं, मैं स्वयमेव आपके पुत्र रूप में अवतार लूँगा। भगवान का प्राकट्य अर्थात् अवतार होता है, सामान्य मनुष्यों जैसे उनका जन्म नहीं होता। यदि उनका जन्म होना मान भी लिया जाय तो उनका जन्म-कर्म दिव्य होता है जिसे जान पाना सम्भव नहीं।
भगवान कृष्ण का अवतार (प्राकट्य) भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में आधी रात कन्स के जेलखाने में हुआ जबकि राम का प्राकट्य चैत्र शुक्ल नवमी भौमवार को दोपहर अभिजित नक्षत्र में हुआ। भगवान को नवमी तिथि प्यारी है। कृष्ण का प्राकट्य अष्टमी तिथि में भले हुआ किन्तु उत्से नवमी तिथि में ही जाना गया। तथा राम का प्राकट्य तो नवमी तिथि में हुआ ही। वस्तुतः नौ पूर्णांक है। रसधर परमात्मा की रसमयी कथा सुनाकर गौरांगी जी ने सबको भाव-विभोर कर दिया।
0 Comments