डिस्लेक्सिया दिवस पर विचार
डिस्लेक्सिया (Dyslexia) एक ऐसा शब्द है जो पढ़ने, लिखने और शब्दों को समझने में कठिनाई का वर्णन करता है
बलिया आजमगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
डिस्लेक्सिया के लक्षण आमतौर पर बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं, हालांकि कुछ मामलों में इसे पहचानने में देरी हो सकती है। इसके कुछ प्रमुख लक्षण है-
पढ़ने में कठिनाई:- बच्चे को शब्दों को पहचानने और पढ़ने में कठिनाई होती है।
अक्षरों और शब्दों की गड़बड़ी:- बच्चे द्वारा शब्दों के अक्षरों को उलट-पलट कर पढ़ना।
धीमी लेखन गति:- लिखने में अधिक समय लगना।
शब्दों का गलत उच्चारण:- कठिन या लंबे शब्दों का सही उच्चारण न कर पाना।
निर्देशों का पालन करने में कठिनाई:- एक साथ कई निर्देशों को समझने में परेशानी होना।
डिसकैलक्यूलिया (Dyscalculia):- जैसा कि नाम से स्पष्ट है की इस प्रकार के अक्षमता रखने वाले बालक गणितीय त्रुटि जैसे गुणा, भाग, जोड़ अथवा घटाने के क्रम को या तो भूल जाते हैं अथवा उल्टा सीधा कर देते है अथवा करने के आदि हो जाते हैैं।
डिसग्राफिया (Dysgraphia):- इनमें मुख्यतः अक्षर की पहचान, जैसे व और ब,‘ग्रह’ और ‘गृह’, स और श आदि का उच्चारण एवं लेखन दोष पाया जाता है।
डिसप्रेक्सिया (Dyspraxia):- डिसप्रेक्सिया मोटर स्किल्स (शारीरिक गतिविधियों) से संबंधित विकार है, जिसमें व्यक्ति को शारीरिक समन्वय और नियंत्रण में कठिनाई होती है। यह हाथों, पैरों, और शरीर के अन्य हिस्सों के बीच समन्वय की कमी उत्पन्न करता है।
निदान:-
-कक्षा शिक्षण के दौरान इस प्रकार की समस्या से प्रभावित बालक शिक्षक के संपर्क में आता है, तो एक मार्गदर्शक के रूप में इस प्रकार से उपरोक्त समस्या का निदान किया जा सकता है।
-श्रवण शक्ति कमजोर होने से बालक को अनेक मानसिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ना है, अतः कक्षा के किसी बालक में ऐसा गुण पाए जाने पर सबसे पहले उसकी श्रवण शक्ति की पहचान करानी चाहिए । इसके लिए शिक्षक को चाहिए कि वह श्यामपट्ट के ठीक सामने वाली दीवार के पास बालक को खड़ा करें तथा स्वयं फुसफुसाना शुरु करें। अब बालक से पूछें कि फुसफुसाहट सुनाई देती है या नहीं। जैसे ही बालक ‘हाँ’ कहे, उससे दो-तीन कदम आगे उसके बैठने कि व्यवस्था कर दें।
-विद्यालय के अन्य शिक्षकों कों भी इस प्रकार कि समस्या से अवगत कराएं।
-अन्य शिक्षक साथियों से निवेदन करें कि उक्त कक्षा में निर्देशन अथवा शिक्षण कराते समय ऐसे छात्र के पास खड़े होकर अथवा सामान्य दूरी पर से ही निर्देश अथवा शिक्षण कार्य सम्पन्न करें तथा स्वयं भी इसका अनुपालन करें।
-कक्षा के अन्य बालकों को संवेदी बालकों से दोस्ती करने तथा साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करें।
-विद्यालय में यदि मौखिक मूल्यांकन कि व्यवस्था है, तो ऐसे बालकों कि मौखिक मूल्यांकन की क्षति पूर्ति लिखित मूल्यांकन के माध्यम से करने कि चेष्टा करें।
-ऐसे बालकों के माता-पिता को विद्यालय में बुलाकर अधिगम अक्षमता से अवगत कराए तथा यथोचित मार्गदर्शन दें।
-हम शिक्षक-साथियों की थोड़ी सावधानी तथा तत्परता से अधिगम अक्षम छात्रों का भविष्य सुधर सकता है।


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