मानव जीवन का उद्देश्य

 मानव जीवन का उद्देश्य 

प्रतापगढ़

कभी अपने विचार किया है कि आपको मानव जीवन क्यों मिला है।  जीवन इहलोक और परलोक की कड़ी है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 84 लाख योनियों के बाद आपको मानव जीवन मिला है। संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य ही श्रेष्ठ है। ऋग्वेद में कहा गया है कि जीवन पवित्र और श्रेष्ठ है।


मनुष्य कर्मयोगी है। वह सांसारिक सुखों में लिप्त रहकर ही अपना सौभाग्य समझते हैं। परंतु यह नहीं समझते कि मानव जीवन बड़े सौभाग्य से मिला है। इसलिए परमेश्वर की भक्ति करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा उद्देश्य है। विषय विकारों को छोड़कर प्रभु में ध्यान लगाने से व्यक्ति अपना जीवन सार्थक कर लेता है। मनुष्य जीवन की बहुमूल्य संपदा उसका कर्म है। भगवत गीता के अनुसार जीवन का लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति )प्राप्त करना है। मोक्ष का मतलब जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त होना। मानव जीवन का उद्देश्य उसे परम सत्य को जान पाना जो हमारे भीतर छिपा है। मनुष्य  जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान यानी अपनी असलियत का ज्ञान। हम कौन है? यह जानने के लिए ही वास्तव में मानव जीवन मिला है। मानव जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के साथ सांसारिक कर्मों के साथ भगवद भक्ति करना आवश्यक है। भाव, विचार, वाणी, और क्रिया के साथ एक रूप होकर जीवन जीना है। जो लोग अपने कर्म के अलावा मन में कोई अन्य विचार लाते हैं वह आसानी से अपने मार्ग से भटक जाते हैं। पूरे विश्वास के साथ किए गए कर्म पर ही सफलता मिलती है।

काम करते वक्त मन को हमेशा शांत और स्थिर रखना चाहिए। आत्मा नश्वर शरीर में निवास करती है।  जीवन  संघर्ष एवं पीड़ाओं का अनुभव करने को विवश हो जाता है। जीवन को प्रकृति काल कर्म की सीमा में बांध देते हैं। काल, कर्म, और प्रकृति के प्रभाव में संपूर्ण चराचर जगत उसे एक सत्ता  के नियंत्रण में कार्य करता है।हिंदू धर्म एवं सनातन धर्म के जितने भी ग्रंथ हैं सबमें देवी देवताओं से जुड़े रहस्य के बारे में बताया गया है।

श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में समस्याओं के पैदा होने का मुख्य कारण गलत सोच है।  इससे समझ में आता है कि मनुष्य को हमेशा अपने मन पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बार-बार व्यक्ति को धोखा देता है। अतः व्यक्ति को मन से ज्यादा कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अंत में हमें पता चलता है कि मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है। सद्गुरु की शरण में जाकर मनुष्य के  भीतर जाति-पांति ईर्ष्या -द्वेष आदि भाव  नष्ट हो जाते हैं। और व्यक्ति ज्ञान रूपी प्रकाश से भर जाता है। 

सीमा त्रिपाठी 

शिक्षिका साहित्यकार लेखिका 

लालगंज प्रतापगढ़

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