बेतहाशा ये जो गुस्सा है न अब कम होगा
सूरत-ए-हाल बदलने को शरर तो देखो
ख़ून के आंसू है रोया वो नगर तो देखो
आग उगली है हवा भी वो शज़र तो देखो
ग़म के बादल कभी छाए तो घटाओं सुन लो
अब जो बरसेगी ये बूंदें वो असर तो देखो
बेतहाशा ये जो गुस्सा है न अब कम होगा
सूरत-ए-हाल बदलने को शरर तो देखो
शब नई सुब्ह का पैग़ाम है लेकर आई
छत पे फैली हुई उजली सहर तो देखो
छूट जाएंगे दरिंदे जो सज़ा के बिन तो
खिल के मुरझायेगी कलियां वो शज़र तो देखो
हम हैं भारत के निवासी जहां गंगा बहती
जान देते हैं नहीं झुकते ये सर तो देखो
बस मुहब्बत में कभी हार न मानी मैंने
हौसला मुझमें भी है तुम ये ज़फ़र तो देखो
देखकर आपको कॉलेज के दिन यादों में
लौट आए है निगाहों में इधर तो देखो
राखी देब 'इरा'चन्दननगर, हुगली, पश्चिम बंगाल
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