हे गुरुवर तेरे चरणों में
शीश झुकाने आई हूं
गुरु वंदना
प्रतापगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
हे गुरुवर तेरे चरणों में
शीश झुकाने आई हूं
दे दो विद्याज्ञान मुझे
शरण तुम्हारे आई हूं
हे गुरुवर तेरे चरणों में
शीश झुकाने आई हूं
ज्ञानदीप आलोकित कर दो
मन अंधियारा मिट जाए
राह कठिन है जीवन की
मुझको चलना तू सिखलाये
यह गुरुवर तेरे चरणों में
शीश झुकाने आई हूं
जिसकी गोद में राष्ट्र है पलता
मानव का उद्धार है करता
ऐसे गुरु को नमन करूं मैं
जिनसे धरा पर प्रकाश है फैलता
हे गुरुवर तेरे चरणों में
शीश झुकाने आई हूं
फूल है हम गुरु बागवान है
उन्हीं से महकता यह संसार है
शिष्यों के लिए गुरु वरदान है
रोम रोम इनसे प्रकाशमान है
हे गुरुवर तेरे चरणों में
शीश झुकाने आई हूं
मां बाप से भी ऊंचा स्थान है
सभी दान से बड़ा शिक्षा दानर है
करते सभी गुरु चरणों की वंदना
देवताओं से पहले इनको प्रणाम है
यह गुरुवर तेरे चरणों में
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका
लालगंज प्रतापगढ़
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