भगवद्भक्ति में बाधक हैं सिद्धियाँ
- स्वामी ईश्वरदास
जब साधक परमात्मा की और बढ़ता है, तो लौकिक सिद्धयाँ उसे अपने चंगुल में फ़साना चाहती हैं
सिकन्दरपुर(बलिया) आजमगढ़ उत्तरप्रदेश
क्षेत्र के प्रख्यात परमधामपीठ डूहा में आयोजित यज्ञ के तीसरे दिन अरणी- मन्थन द्वारा अग्नि-प्राकट्य हुआ l सांध्य सत्र में सुधी श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए परमधाम प्रतिष्ठापक स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज ने गीता-ज्ञानयज्ञ के क्रम में बताया कि गरु एवं वेदवचन के अनुसार अपने को साधन-पथ में आगे बढ़ाना चाहिए l स्वामी जी ने बताया कि हमें अपने सभी कार्यों को करते हुए नित्य समय निकालकर भगवान का ध्यान करना चाहिए l जब साधक परमात्मा की और बढ़ता है, तो लौकिक सिद्धयाँ उसे अपने चंगुल में फ़साना चाहती हैं l वे साधक को अनेक चमत्कारों का लोभ दिखाती हैं l सच्चा साधक इनको दरकिनार करते हुए अपने गंतव्य-पथ पर अग्रसर हो जाता है l पूज्य श्री ने नारद भक्ति सूत्र की चर्चा में कहा कि महापुरुषों का संग दुर्लभ है l दीर्घकाल तक महापुरुषों के साथ रहने से जीवन के गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठ जाता है l सचेत करते हुए उन्होंने कहा कि हमें महापुरुषों के पास जाकर अपने कल्याण की बात पूछनी चाहिए न कि सांसारिक नाशवान तुच्छ वस्तुओं की l उन्होंने बताया कि हमें निरन्तर परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए क्योंकि हमारा चिन्तन जिस प्रकार का होता है उसी प्रकार का अगला जन्म l यदि हम पाशविक वृत्ति रखते हैं तो नीच योनियों में दर-दर भटकना पड़ेगा
स्वामी जी आगे बाताया कि श्रीकृष्ण कहते है – हे अर्जुन ! कर्मयोग का ज्ञान मैंने सृष्टि के आरम्भ में सूर्य से कहा था l सूर्य ने मनु से और मनु ने इक्ष्वाकु से कहा था l लेकिन धीरे- धीरे यह ज्ञान लुप्तप्राय हो गया था l अतः मै पुनः इसे तुमसे कहा l इस कर्मयोग का सहारा लेकर जनक जैसे राजर्षि परमात्मा को प्राप्त हो गए l श्रीकृष्ण सम्पूर्ण लोकों के अधिपति होते हुए भी सारथी बनकर मानव समाज को कर्म करने का उपदेश दिया l इसलिए हमें भी कर्मयोग का सहारा लेकर अपने जीवन को धन्य बना लेना चाहिए l
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