यज्ञ-पूर्णाहुति के साथ ‘प्रेमाश्रु’ पुस्तक का विमोचन

 यज्ञ-पूर्णाहुति के साथ ‘प्रेमाश्रु’ पुस्तक का विमोचन 

          सिकन्दरपुर बलिया 


 परमधामपीठ डूहा में आयोजित गीता-ज्ञानयज्ञ एवं वैदिक यज्ञ के पाँचवें और अन्तिम दिन मंगलवार को वैदिक यज्ञाचार्य पं० रेवती रमण  तिवारी के निर्देशन में देवों और देवशक्तियों का पूजनार्चन पूर्वक यज्ञ भगवान को पूर्वाहुति अर्पित की गयी ।

             श्रद्धालुओं से खचाखच भरे आश्रम परिसर में व्यासपीठ पर विराजमान पूर्व मौनव्रती स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज की चरणपादका-पूजन के पश्चात् यज्ञाचार्य ने कहा कि प्रभु की शरणागति में ऐसी विलक्षण क्षमता है कि भगवान अपने भक्तों का सारा भार स्वयं वहन करते हैं। इसी से श्रीहरि ने अर्जुन को सभी आश्रयों का परित्याग कर प्रभु के आश्रित होने की शिक्षा दी। ऐसे में भक्त को अपने धर्म या अधर्म की चिन्ता नहीं करनी पड़ती, ना ही उसे पाप-पुण्य लगता क्योंकि उसके धर्माधर्म का विचार भगवान ही करते हैं, अर्जुन के हृदय पर श्रीकृष्ण की इन बातों का गहरा प्रभाव पड़ा।

           गुरु-स्तवन करते हुए आश्रम-अधिष्ठाता स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि ज्ञानयज्ञ की कभी पूर्णाहुति नहीं होती किन्तु हम लोग मात्र अपनी सन्तुष्टि हेतु इसकी पूर्णाहुति मान लेते हैं। महाभारत के प्रमुख पात्रों में अर्जुन को सूक्ष्म मोह (विषाद), कुन्ती आदि को मिश्रित मोह तथा दुर्योधन आदि को स्थूल मोह हुआ था । वस्तुतः श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर हम सबके हित के लिए गीता-ज्ञान सुनाया। सबमें समभाव की दृष्टि रखते हुए पण्डितों अर्थात विद्वानों-बुद्धिमानों के समान आचरण करना चाहिए l 

              इस अवसर पर महाराज श्री ने सुकवि राजेन्द्र प्रसाद की नव सृजित काव्य-कृति ‘प्रेमाश्रु’ का विमोचन कर उनको अंगवस्त्र से सम्मानित किया। अन्ततः भगवान को भोग लगाया हुआ महाप्रसाद आबाल वृद्ध सभी श्रद्धालु नर-नारियों ने ग्रहण किया। प्रसाद पाने का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। कार्यक्रम का संचालन प्रधानाध्यापक सत्यनारायण यादव ने किया।

                                                       -नवतेश ब्रह्मचारी

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