कूर्मवत् होती है योगियों की स्थिति
- स्वामी ईश्वरदास
सिकन्दरपुर बलिया आजमगढ़ उत्तरप्रदेश
क्षेत्र के परमधामपीठ डूहा में आयोजित यज्ञ के दूसरे दिन मण्डप-प्रवेश एवं वेदीपूजनादि किया गया l सांध्य सत्र में श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए आश्रम-अधिष्ठाता स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज ने अर्जुन को समझावन देते हुए कृष्ण के कथन को रेखांकित किया कि इस विषम वेला में तुम्हें मोह कैसे पैदा हुआ? तुम्हारी इस कायरता पर तुम्हारे दुश्मन भी निन्दा करेंगे l उन्होंने साधु, सती, शूरमा, ज्ञानी और गजदन्त का दृष्टान्त देते हुए बताया कि समाहित चित्त वाले ज्ञानियों के हृदय में चेतना का चिराग जलता रहता है, अतः वे अपने मार्ग से पग पीछे नहीं हटाते l अर्जुन बोला – हे केशव ! मेरी चित्तवृत्तियाँ चंचल, बुद्धि विकल और मन चलायमान हो रहा है l कृष्ण ने कहा – शरीर तो नाशवान है किन्तु इसमें स्थित अविनाशी जीवात्मा को हवा, पानी, आग इत्यादि कोई भी पदार्थ प्रभावित नहीं कर सकते l तुम्हारे कथन से स्पष्ट हो रहा है कि अभी तुझमें जीवपन है, तुम्हें आत्मवान बनाना चाहिएl मोहासक्त व्यक्ति जीव-संज्ञक है, जबकि आत्मा ज्ञान स्वरूप स्थिति का नाम है l परमात्मा तुरीयातीत और चिदानन्दात्मक स्वरूप वाले होते हैं l यही बात वाल्मीकि ने राम के प्रति भी कही है – ‘चिदानन्दमयि देह तिहारी l’ उन्हें विगत विकार व्यक्ति ही जान- समझ सकता है l स्वामी जी ने बल देकर कहा कि लोग देह-गेह की सुम्दरता में भ्रमित हो जाते हैं l चेतना की धारा परमधाम से अवरोही क्रम से संसार में आकर मोहावृत है l इसे साधना द्वारा आरोही क्रम से पुनः अपने निजधाम परमधाम पहुँचना है l योगीजन इन्द्रियों को शब्द-स्पर्शादि वाह्य विषयों की ओर से कूर्मवत् खींचकर परमात्मा की ओर अभिमुख व स्थिर हो जाते हैं l विषयों का चिंतन करने से आसक्ति बढ़ती है, आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है और इसी क्रम से बुद्धि का नाश हो जाता है l फिर तो सर्वनाश होना ही है, जबकि स्थितप्रज्ञ व्यक्ति अपने दैनिक कृत्यों को सम्पन्न कर ध्यान के जरिये परमात्मा के चिदानन्दात्मक स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाते हैं l संसारियों की रात्रि योगियों के जागरण का समय हुआ करता है और संसारियों के जागरण का समय योगियों के लिए रात के समान होता है l वक्ता ने सूफी सन्त वायजीद बगदादी का दृष्टान्त देते हुए समझाया कि बादशाह की बादशाहत बाहरी होती है किन्तु योगीजन अपने अन्दर स्थित अक्षुण्ण सम्पत्ति के बादशाह होते हैं l
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