पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ व्रत

 विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए निर्जल उपवास रखती हैं।

करवा चौथ का व्रत : सुहागिनों का पावन पर्व




प्रतापगढ़

करवा चौथ भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक पर्व है, जो दांपत्य जीवन की पवित्रता, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह व्रत हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए निर्जल उपवास रखती हैं।

इस व्रत की शुरुआत प्रातःकाल सरगी से होती है, जो सास द्वारा बहू को प्रेमपूर्वक प्रदान की जाती है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, जो परिवार में प्रेम, एकता और अपनत्व की भावना को मजबूत करती है। सरगी में फल, मिठाई, सूखे मेवे और हल्का भोजन शामिल होता है, जिसे सूर्योदय से पहले ग्रहण किया जाता है। इसके बाद महिलाएं पूरे दिन जल-अन्न का त्याग कर व्रत का पालन करती हैं।

शाम के समय महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सोलह श्रृंगार से सुसज्जित होकर करवा चौथ की पूजा करती हैं। पूजा में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और चंद्र देव की आराधना की जाती है। महिलाएं विधिवत कथा सुनती हैं और करवा (मिट्टी के घड़े) में जल भरकर देवी-देवताओं को अर्पित करती हैं। यह करवा सौभाग्य, प्रेम और अटूट संबंध का प्रतीक माना जाता है।

रात को जब चंद्रमा उदय होता है, तब महिलाएं छलनी से चंद्रमा का दर्शन करती हैं और फिर अपने पति का मुख देखती हैं। इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत का समापन करती हैं। यह भावनात्मक क्षण पति-पत्नी के बीच के प्रेम, त्याग और विश्वास की गहराई को दर्शाता है।

करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय नारी के स्नेह, श्रद्धा और समर्पण की अभिव्यक्ति है। यह व्रत स्त्री के उस अटूट विश्वास का प्रतीक है, जो वह अपने पति और परिवार के लिए रखती है। इस दिन महिलाएं न केवल अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं, बल्कि पूरे परिवार की खुशहाली और मंगल की प्रार्थना भी करती हैं।

इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से माता गौरी, भगवान गणेश और चंद्र देव की पूजा करती हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से की गई पूजा और व्रत से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

करवा चौथ का यह पर्व समाज में प्रेम, विश्वास और नारी शक्ति की गरिमा को बढ़ाने वाला पर्व है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रेम और त्याग के साथ निभाया गया संबंध सदा अटूट रहता है।

– सीमा त्रिपाठी
शिक्षिका, साहित्यकार, लेखिका एवं अध्यक्ष महिला शिक्षक संघ, लालगंज प्रतापगढ़

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