बिन बादल के ही बरसात
हो गई ,
अजनबी
प्रतापगढ़ लखनऊ उत्तरप्रदेश
एक अजनबी से मेरी मुलाकात
हो गई।
मिलते ही उससे आंखें चार
हो गई ,
कैसे बताऊं हाल मेरा क्या
हुआ है,
बिन बादल के ही बरसात
हो गई ,
एक अजनबी से मेरी मुलाकात
हो गई ।
चंद लम्हों में वो मेरी जान
बन गई ,
मैं अकेला मेरी हमसफर
बन गई ,
जब से मिली है वो जाने क्या
हो गया,
वो अजनबी जीने की वजह
बन गई,
एक अजनबी से मेरी मुलाकात
हो गई।
जाने कब वो किस्मत की लकीर
बन गई,
मुद्दतों से जिसे ढूंढा हो मुझको
मिल गई ,
उससे जुदा होके जीना मुश्किल है
वो जाने जाना मेरी तकदीर
बन गई,
एक अजनबी से मेरी मुलाकात
हो गई।
सीमा त्रिपाठी
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका
लालगंज प्रतापगढ़
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